हम सभी जानते हैं कि विटामिन डी को सनसाइन विटामिन कहा जाता है लेकिन इसके पीछे क्या प्रमुख कारण हैं? हमारी त्वचा में D3 रिसेप्टर होते हैं। जब ये रिसेप्टर धूप में आते हैं तो हमारी किडनी और लिवर द्वारा विटामिन डी सक्रिय हो जाते हैं। लेकिन हमारी शहरी जीवनशैली में हम अपना अधिकतर समय एयर कंडीशनर कमरों व गाड़ियों में ही बिताते हैं।
ब्रांड डेस्क, नई दिल्ली। डेढ़ साल के तनिष ने अभी-अभी चलना शुरू किया है, लेकिन उसे बाउलेग और नॉक नी की समस्या है। 4 वर्षीय नाईशा की कलाइयों और टखनों में सूजन और दर्द रहता है। सात साल का कबीर थकान और मूड स्विंग की परेशानी का सामना कर रहा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि अलग-अलग समस्या से जूझ रहे इन तीनों बच्चों में एक ही पोषक तत्व की कमी थी और वो है विटामिन डी। हम सभी जानते हैं कि विटामिन डी को सनसाइन विटामिन कहा जाता है, लेकिन इसके पीछे क्या प्रमुख कारण हैं? हमारी त्वचा में D3 रिसेप्टर होते हैं। जब ये रिसेप्टर धूप में आते हैं तो हमारी किडनी और लिवर द्वारा विटामिन डी सक्रिय हो जाते हैं। लेकिन हमारी शहरी जीवनशैली में हम अपना अधिकतर समय एयर कंडीशनर कमरों व गाड़ियों में ही बिताते हैं। ऐसे में हमारा शरीर सूर्य के सम्पर्क में नहीं आ पाता। जिसके कारण वर्तमान समय में ज्यादातर लोग विटामिन डी की कमी से जूझ रहे हैं।
हमारे शरीर में विटामिन-डी की भूमिका
एक हार्मोन की तरह काम करने के अतिरिक्त विटामिन डी हमारे शरीर में व्हाइट ब्लड सेल के निर्माण, कैल्सियम और फास्फोरस जैसे मिनरल को शरीर में अवशोषित करने, इंसुलिन रजिस्टेंस और थायराइड के उत्पादन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऐसे में बार-बार सर्दी खांसी होने, जोड़ों में दर्द, मीठा खाने की इच्छा व लिबिडो के स्तर में कमी महसूस होने पर विटामिन डी के स्तर की जांच करानी चाहिए।
बच्चों में विटामिन-डी की कमी के लक्षण
बड़े हो रहे बच्चों को पर्याप्त धूप न मिलने के कारण वो विटामिन डी की कमी हो जाती है। विटामिन डी की ज्यादा कमी होने पर रिकेट्स नामक बीमारी हो जाती है, जिसके कारण ग्रोथ प्लेट्स प्रभावित होते हैं। बता दें कि लड़कियों के ग्रोथ प्लेट सामान्यतः 13-15 वर्ष की उम्र में और लड़को के ग्रोथ प्लेट 15-17 वर्ष की उम्र में बंद हो जाते हैं। ऐसे में बड़े हो रहे बच्चों के लिए विटामिन डी की प्रचुर मात्रा होना उनके पौष्टिक विकास के लिए बेहद आवश्यक है। विटामिन डी की कमी का पता लगाने के लिए कुछ सामान्य लक्षण इस प्रकार हैं-
- नवजात शिशुओं में नाजुक हड्डियों का होना
- बड़े होते बच्चों की लम्बी हड्डियो में सूजन व दर्द, जिन्हें पसलियों, कलाईयों व टखनों पर आसानी से देखा जा सकता है।
- 6-23 महीनों के बच्चों की पसलियों में कॉस्टोकोड्रल जंक्शन पर माले की तरह दिखने वाली सूजन जिसे ‘रिकेटी रोजरी’ कहा जाता है।
- किशोरावस्था से पूर्व में थकान, जोड़ों में दर्द, मूड स्विंग आदि विटामिन डी की कमी के संकेत हैं।
बच्चों में विटामिन-डी की कमी के प्रमुख कारण
नवजात शिशुओं व छोटे बच्चों में विटामिन डी की कमी का प्रमुख कारण धूप न लेना है। इसके अतिरिक्त अन्य कारण इस प्रकार हैं:
त्वचा का रंग- त्वचा में डार्क पिगमेंट शरीर के सूर्य की रोशनी लेने की क्षमता को कम करता है। जिसके कारण सांवले बच्चों में विटामिन डी की कमी होने की अधिक संभावना रहती है। बता दें कि सांवले बच्चों को अन्य बच्चों की तुलना में 15 गुना अधिक समय तक धूप लेने की आवश्यकता होती है।
शरीर का वजन- ज्यादा बॉडी फैट वाले बच्चों में विटामिन डी की कमी होने की संभावना ज्यादा होती है। बॉडी फैट ज्यादा होने पर शरीर विटामिन डी को ऐक्टिवेट नहीं कर पाता है।
फैट ऐब्जॉर्ब करने की समस्या- विटामिन डी फैट में घुलनशील होता है। ऐसे में फैट ऐब्जॉर्ब करने की समस्या से जूझ रहे बच्चों में विटामिन डी की कमी होने का खतरा काफी बढ़ जाता है।
मेडिकल कंडीशन- क्रोहन्स डिजीज (Crohn’s disease) और सिस्टिक फाइब्रोसिस (Cysticl Fibrosis) जैसी बीमारियां भी विटामिन डी की कमी का प्रमुख कारण हैं।
कुछ दवाएं- एंटीकॉन्वल्सेंट जैसी दवाएं लेने वाले बच्चों में विटामिन डी की कमी होने का खतरा होता है।
Popular Topics
Understanding Bournvita: Relationship with Milk & Sugar Content Explained
Reviewed By Kaushiki Gangully,
What is Vitamin D deficiency? Spotting early signs of Vitamin D deficiency
Reviewed By Divya Gandhi, Dietitian
How to help your child retain strength throughout the day
Reviewed By Apurva Surve, Sports Nutritionist
Understanding How Vitamin D Leads to Strength
Reviewed By Kejal Shah, Nutrition Expert
विटामिन डी की कमी का बच्चों पर प्रभाव
आमतौर पर विटामिन डी की कमी के लक्षण हमें इसकी काफी ज्यादा कमी होने पर ही दिखाई देते हैं, जिसके कारण इसकी कमी को हम नजरअंदाज कर देते हैं। इसके अतिरिक्त विटामिन डी की कमी के लक्षणों को आमतौर पर माता-पिता या अन्य लोगों द्वारा समझ पाना भी मुश्किल होता है। बता दें कि 2 साल तक की उम्र के बच्चों में विटामिन डी की कमी होने की संभावना काफी ज्यादा होती है। साथ ही केवल मां के दूध पर निर्भर बच्चों में भी विटामिन डी सप्लीमेंट न दिए जाने पर इसकी कमी हो सकती है।
बच्चों में विटामिन डी की कमी होने पर दौरे पड़ना, सही विकास न होना, चिड़चिड़ापन, विकास में देरी, कमजोर मांसपेशियां व सांस से जुड़ी बीमारियां हो सकती हैं। तो वहीं किशोरावस्था में घुटने, पीठ, जांघ व पैर के जोड़ों में दर्द के लक्षण दिखाई देते हैं। ये लक्षण सीढ़ियां चढ़ते, दौड़ते या फिर बैठकर (स्क्वाट पोजीशन से) खड़े होने पर देखे व महसूस किए जा सकते हैं। इस तरह होने वाला दर्द सामान्य तौर पर काफी तेज नहीं होता। इसके अतिरिक्त किशोरावस्था में चेहरे का हिलना, हाथों और पैरों में ऐंठन जैसे लक्षण भी देखे जाते हैं। विटामिन डी की कमी को सही समय पर ट्रीट न किए जाने पर हड्डियों में कमजोरी, ऐंठन, फ्रैक्चर व हार्ट को प्रभावित करने का खतरा बढ़ जाता है।
विटामिन डी के कमी की जांच
विटामिन डी की कमी का पता रक्त की जांच से लगाया जा सकता है-
Serum D स्तर | परिणाम |
20ng/mL से कम | कमी |
21-29ng/mL |
सामान्य |
30ng/mL से ज्यादा | प्रचुर मात्रा |
(Source:- Clinical & Therapeutic Nutrition by ICMR)
बच्चों के लिए विटामिन डी की आवश्यक मात्रा
(Recommended Dietary Allowances (RDAs)
उम्र | RDA |
नवजात शिशु से 12 महीने के बच्चों तक | 10mcg/400IU |
1-18 वर्ष तक | 15mcg/600IU |
(Source:-Nutritive Value of Indian Foods by NIN)
बच्चों में विटामिन डी की कमी का उपचार
विटामिन डी की कमी को पूरा करने के लिए इन उपचारों पर ध्यान देना चाहिए-
पर्याप्त मात्रा में कैल्सियम लेना, धूप लेना, विटामिन डी और कैल्सियम युक्त खाद्य पदार्थों जैसे मशरूम, फोर्टिफाइड अनाज, बादाम, पनीर, डेयरी प्रोडक्ट, एग योक (अण्डे की जर्दी), फैटी फिश, फिश लिवर ऑयल आदि पर्याप्त मात्रा में सेवन शरीर में विटामिन डी की कमी को दूर करता है। इसके अतिरिक्त मां के दूध पर निर्भर बच्चों को जन्म के कुछ दिनों बाद तक 400IU vitamin D सप्लीमेंट रोजाना देना विटामिन डी की कमी को दूर करता है।
एक दिन में कम से कम 15 मिनट तक धूप लेना व सही खान-पान से हमारा शरीर खुद ही विटामिन डी का निर्माण करता है। हालांकि बच्चों में इस बात को सुनिश्चित करने के लिए माता-पिता को विशेष ध्यान देना होता है। ऐसे में किसी भी प्रकार की शारीरिक समस्या व पोषण की कमी का पता लगाने के लिए बच्चों की हर निश्चित समय पर जांच करानी बेहद आवश्यक है। अगर आप भी अपने बच्चों के सम्पूर्ण पोषण की जांच करना चाहते हैं तो Nutricheck की सहायता ले सकते हैं। तो फिर देर किस बात की, बस एक क्लिक में करें अपने बच्चे को पोषण की जांच- https://www.tayyarijeetki.in
The views expressed are that of the expert alone.